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Monday, April 20, 2020

2 नाव की सवारी

भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन, समृद्ध, संस्कृति या कहें कि यह सभी संस्कृतियों की जन्मदाता है। जीने की कला हो , राजनीति क्षेत्र, शिक्षा का विस्तार हो या संस्कारों की शुरुआत हो या सभी के समानता की बात
महिलाओं के हक की लड़ाई हो किसी भी क्षेत्र में भारतीय संस्कृति सदैव विशेष स्थान पर रही है । अन्य देशों की संस्कृति तो समय-समय पर धारा में बहती चलती जा रही हैं ।परंतु भारतीय संस्कृति आज भी अपनी परंपरागत अस्तित्व के साथ अमर बनी हुई है
आज के समय में संस्कृति व सभ्यता एक दूसरे के पर्यायवाची समझे जाने लगे हैं । जिसके फल स्वरूप भारतीय संस्कृति भी समय की धारा में नष्ट होती दिखाई पड़ रही है ‌। नष्ट होने का आभास नजर आ रहा है क्योंकि वास्तव में सभ्यता का संबंध हमारी बाहरी जीवन से होता है। यथा खानपान ,रहन सहन ,बोलचाल, पोशाक , संस्कृति का संबंध हमारी सोच चिंतन और विचारधारा से होता है ।और इस अर्थ का स्पष्ट ना होने के कारण ही भारत आज एक ऐसा देश बन गया है ।जो संस्कृति व सभ्यता नाम की दो नाव में सैर करता नजर आ रहा है। जिसका साफ-साफ उदाहरण हम अपने जीवन में देख सकते हैं भारतीय लोग इसे आधुनिकरण के नाम से पुकारते हैं और अपने जीवन को एक नई दिशा में चला रहे हैं शिक्षा में अधिक से अधिक अंग्रेजी को अपनाकर अधिक से अधिक पश्चिमी पोशाक पहनकर हालांकि वे पोशाक को पहनने के बाद भी इस पोशाक को पहनने वाली लड़की को एक ऐसी नजर से देखते हैं। जो भारतीय संस्कृति में पाप माना जाता है ।भारत में लोग अपनी सभ्यता को पूरी तरह से पश्चात सभ्यता बनाने की जटिल कोशिश कर रहे हैं। परंतु साथ ही साथ इसके विरोध में भी कोई कमी नहीं भारतीय संस्कृति ना तो खुद को अपनी परंपरागत संस्कृति के साथ जुड़े पा रही हैं ।और ना ही पश्चिमी सभ्यता के साथ जिसने भारत को बीच मझधार पर लटका कर छोड़ दिया है ।आज भारत की सभ्यता व संस्कृति नाम की दोनों नाउ में डूबता नजर आ रहा है।

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